Special Report: अस्पतालों और डॉक्टरों की मौजूदगी के बावजूद बड़े शहरे बने कोरोना हब
नरजिस हुसैन
यह बात सच है कि पिछले कुछ महीनों में जो कोरोना का कहर जारी था वो अब कुछ थमता-सा नजर आ रहा है लेकिन, महाराष्ट्र, गुजरात और पश्चिमी बंगाल में कोरोना के एक्टिव मामले लंबे वक्त तक बने रहे। वहीं दूसरी तरफ उत्तर प्रदेश, बिहार, ओड़ीसा और आंध्र प्रदेश के बड़े शहरों में एक्टिव मामले 16 से 28 प्रतिशत के बीच देखे गए। यह एक परेशानी की बात है कि कोरोना के मामले शहरों में ज्यादा हुए और गांवों में जहां कोरोना के पहुंचने का शुरूआती डर था वह इलाके इससे काफी हद तक बचे रहे।
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यह बात इसलिए भी हैरान करने वाली है क्योंकि देश को सबसे काबिल डॉक्टर और सरकारी और प्राइवेट अस्पतालों की भीड़ जितनी शहरों में है उतनी गांवों में नहीं। अब पश्चिम बंगाल को ही अगर देखें तो मालूम होता है कि राज्य के कुल एक्टिव केस में 72.7 प्रतिशत केस ग्रेटर कोलकाता सहित उत्तर और दक्षिण 24 परगना, हावड़ा और हुगली जैसे बड़े इलाकों में हुए। हालांकि राज्य के 19 बड़े सरकारी अस्पतालों में सात सिर्फ कोलकाता में ही मौजूद है। कुछ इसी तरह महाराष्ट्र में भी हुआ वहां ग्रेटर मुंबई सहित थाणे, पुणे, और नागपुर में 65.4 फीसद कोरोना के एक्टिव मामले आए। गुजरात में अहमदाबाद, गांधीनगर, सूरत, वदोदरा और राजकोट जो सभी राज्य के बड़े शहर है वहां 67 प्रतिशत एक्टिव कोरोना के मामले दर्ज हुए।
यह हकीकत है कि देश के 80 प्रतिशत डॉक्टर और 60 फीसद अस्पताल शहरी इलाकों और बड़े शहरों में मौजूद है। इसलिए यहां जब कोरोना फैला तो इतनी तेजी से फैला कि डॉक्टरों और अस्पतालों से लैस होने के बाद भी इन शहरों को उसे काबू करने में महीनों लग गए और तब तक कोरोना ने कइयों की जान ली और कइयों को मानसिक तौर पर बीमार कर लोगों में अपना डर फैलाया। एक वक्त तो इस बीच ऐसा भी आया जब दिल्ली यानी देश की राजधानी में कोरोना की खबर अखबारों और टेलिविजन पर कई हफ्तों तक सुर्खियों में रही।
लेकिन, इसके अलावा उत्तर प्रदेश की अगर बात करे तो वहां जो ट्रेंड देखा गया वह यह था कि राजधानी लखनऊ समेत कानपुर, गाजियाबाद-नोएडा, आगरा और मेरठ में 27 प्रतिशत कोरोना के मामले ही दर्ज हुए। इसके अलावा अन्य इलाको में भी कोरोना कमोबेश फैला जिसमें मरीजों तक इलाज पहुंचाना खासा मुश्किल हुआ। बिहार में भी कोरोना के 27.8 प्रतिशत एक्टिव मामले पटना, गया, भागलपुल और मुजफ्फरपुर में पाए गए। और उसकी एक बड़ी वजह यह बी मानी गई कि देशभर में फैले बिहार के प्रवासी मजदूरों ने ट्रेनों से जब अपने-अपने शहरों का रुख किया तो ये वहां कोरोना के वायरस भी साथ लेकर गए।
राज्य |
बेड (एक्टिव मरीजो के लिए) |
बड़े शहरों में कुल एक्टव मामले |
|
|
|
प. बंगाल |
5.1 |
72.7 |
गुजरात |
4.4 |
66.9 |
महाराष्ट्र |
1.6 |
65.4 |
पंजाब |
10.1 |
64.3 |
उत्तराखंड |
7.8 |
59.9 |
छत्तीसगढ़ |
6.9 |
57 |
कर्नाटक |
3.5 |
53.2 |
असम |
1.8 |
48 |
मध्य प्रदेश |
7.4 |
46.3 |
झारखंड |
3.1 |
45.1 |
तमिल नाडु |
2.8 |
41.1 |
जम्मू कश्मीर |
1.1 |
40.5 |
केरल |
8.6 |
38.1 |
राजस्थान |
7.1 |
32.4 |
बिहार |
1.5 |
27.8 |
उडीसा |
2 |
27.4 |
हरियाणा |
5.9 |
27.3 |
यूपी |
6.8 |
26.9 |
आंध्रा |
1.1 |
16 |
हिमाचल |
13.9 |
6.3 |
इन आकंड़ों से साफ पता चलता है कि बिहार में कोरोना के एक्टिव मरीजों के लिए बेड का बंदोबस्त सबसे कम था। हालांकि, इस लिहाज से बिहार ही अकेला ऐसा राज्य नहीं रहा आंध्रा प्रदेश, उड़ीसा और राजस्थान की भी कमोबेश यही हालत थी। एक अच्छी बात यह रही कि केरल और हिमाचल में ही कोरोना के मरीजो के लिए अस्पतालों में बेड का सबसे अच्छा इंतजाम था। ये आकंड़े पिछले उन पांच महीनों के हैं जिससे निपटने के लिए देश की सरकारी और प्राइवेट मेडिकल सुविधाओं ने खुद को झोंक दिया था। बेहतर यही होगा कि इनसे कुछ सबक लेकर इस हालात को बदला जाए।
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